हरिद्वार (पंकज चौहान) – विश्व हिन्दू परिषद उत्तराखण्ड के प्रांत मंत्री विपिन चंद्र पाण्डेय अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में साल 1984 में लिए गए संकल्प के प्रत्यक्ष में साक्षी रहें और इसके साथ ही वह राम काज में जुट गए थे। उन्होंने स्थानीय स्तर पर राम जन्मभूमि अयोध्या आंदोलन को लेकर जनजागृति का महत्वपूर्ण कार्य किया था।
ज्ञात रहें डा. विपिन पांडे ने वर्ष 1989 में एम.बी.पी.जी. कालेज से स्नातक की परीक्षा पास की थी। उसके बाद श्रीराम मंदिर आंदोलन के चलते उन्होंने एक वर्ष के लिए पढ़ाई छोड़ दी। वर्ष 1990 में जब जेल से बाहर आए तो एम.ए. में प्रवेश लिया। द्वितीय वर्ष की परीक्षा श्रीराम का काज पूरा करने के बाद वर्ष 1993 में दी थी।
डा विपिन चंद्र पाण्डेय के अनुसार उस समय हल्द्वानी तथा आसपास क्षेत्रों में साल 1989 तक श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में कार्य करने हेतू बड़ी संख्या में युवक संगठित गए थे। साल 1990 में देश के विभिन्न भागों से रामभक्तों के अयोध्या पहुंचने का क्रम शुरू हो गया था। हमने भी यहां से गोपनीय आधार पर अलग-अलग जत्थों को रवाना किया था। उन्होंने बताया कि 11 अक्टूबर 1990 को नैनीताल विधानसभा क्षेत्र के करीब 35 युवाओं का जत्था बसों के माध्यम से रवाना हुआ। हम पर पुलिस को नजरें पहले से थीं। ऐसे में रामपुर पहुंचते ही कड़ी चेकिंग होती देखी तो ट्रकों में लदकर हम योजनानुसार लौट आए, मगर 13 अक्टूबर को रुद्रपुर में पुलिस ने पकड़ लिया। ऐसे में बेहद चतुराई से हमने अन्य साथियों को मौके से भगा दिया और मेरे सहित तिलकराज बेहड़ व सुभाष चतुर्वेदी ने गिरफ्तारी दी। तिलकराज को अल्मोड़ा और सुभाष को हल्द्वानी जेल भेजा गया, जबकि मुझे रुद्रपुर थाने में रखा गया। छह दिन पुलिस बंदीगृह में रखकर कठोर यातनाएं दी गईं। अन्य कारसेवकों की जानकारी जुटाने के लिए बंदीगृह में रोजाना दो से तीन घंटे पुलिस लाठियां मारती थी, मगर एक भी साथी के विषय में नहीं बताया और प्रत्येक लाठी की चोट का जवाब श्रीराम के जयघोष से दिया। इस उत्पीड़न के बावजूद नियमित सुबह सूर्य नमस्कार और प्राणायाम करता था। इसे देख थाना प्रभारी भी हैरान थे। ऐसे में सातवें दिन हल्द्वानी जेल भेजा गया। इन सात दिनों मेरे घर वालों और साथियों को भी पता नहीं था कि मैं कहां हूं, जीवित हूं भी या नहीं। हालांकि, हल्द्वानी पहुंचने पर मैंने घर संदेश भिजवाया। मेरे ऊपर काफी कठोर धाराएं लगाई गई थीं, ऐसे में जल्द बाहर आना भी संभव नहीं था। हल्द्वानी और अल्मोड़ा जेल में मैंने करीब 42 दिन की सजा काटी।
डा. विपिन चंद्र पाण्डेय के अनुसार वह युवावस्था में अन्य चीजों से ध्यान हटाकर श्रीराम मंदिर के आंदोलन से जुड़ गए। श्रीराम मंदिर आदोलन से जुड़े लोगों पर पुलिस व खुफिया विभाग की नजरें थी। अधिकांश बैठकें गोपनीय होतीं थीं मगर हल्द्वानी में सामान्य रूप से जन- जागरण का काम और बैठके प्रमुख रूप से हिंदू धर्मशाला, श्रीराम मंदिर, भैरव मंदिर, सत्यनारायण धर्मशाला, लटूरिया बाबा आश्रम आदि में होती थीं। वर्ष 1992 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विद्यार्थी विस्तारक था। इस दौरान माहौल ठीक हो गया था और पूर्णकालिक कार्यकर्ता होने के नाते करीब 15 नवंबर 1992 के आसपास अयोध्या बुला लिया गया था। साथ ही कुछ दिनों बाद देशभर से लोगों के पहुंचने का क्रम भी शुरू हो गया था। वहीं, बाबरी विध्वंस से एक दिन पूर्व अभ्यास भी किया गया था, मगर अगले ही दिन परिस्थितियां बदल गईं। विध्वंस के दौरान मैं हल्द्वानी के क्षेत्र के साथियों के साथ श्रीराम टीले पर गर्भगृह में ही था। एक अलग प्रकार को शक्ति का संचार हो रहा था।
डा. विपिन चंद्र पाण्डेय ने कहा कि यह परम सौभाग्य का विषय है कि वह अपनी आंखों के सामने प्रभु के भव्य मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा को देख सकेंगे।