नवीन संसद भवन आध्यात्म और राष्ट्रीयता का प्रतीक है – विश्व हिन्दू परिषद

नई दिल्ली

नयी दिल्ली (विशेष संवाददाता) – नए संसद भवन का उद्घाटन भारत के लोगों की अंतर्निहित एकता, परंपरा, संस्कृति, जीवन मूल्यों को दर्शाता एक महान आयोजन है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया है, यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण तारीख है।

विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय महासचिव मिलिंद परांडे ने नवीन संसद भवन के उद्घाटन पर कहा कि यह समर्पण कार्यक्रम तमिझागम के 21 अधीनम द्वारा सेंगोल को सौंपे जाने से किया गया था। अधीनम शैव सिद्धांतम मठों के प्रमुख हैं, जिनकी स्थापना 1000 वर्ष पूर्व तमिलनाडु में शिव मंदिरों और धर्मग्रंथों के प्रचार और सुरक्षा के लिए की गई थी। सेंगोल राजा के धर्मयुक्त शासन तथा उसके राज्य के न्यायपूर्ण शासन और उसकी जनता के कल्याण का प्रतीक है। अनेक तमिल साहित्य में सेंगोल को सुशासन के सबसे महत्वपूर्ण लेख के रूप में दर्शाया गया है। आमतौर पर संत सेंगोल को राज्य के नए शासक को सौंपते हैं, पवित्र भजनों के साथ आशीर्वाद देते हैं और उनसे तमिल में “सेंगोल वझुवमल अतची पुरिया वेंडुम” कहते हैं, जिसका अर्थ है “सेंगोल को गिराए बिना राज्य पर शासन करना”। यदि उसका शासन धर्मयुक्त नहीं है, तो सेंगोल उसके हाथों से गिर जाएगा।

मिलिंद परांडे ने कहा कि वही सेंगोल जो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट किया गया है, उसका पहली बार 15 अगस्त सन 1947 को अनावरण किया गया था। अंग्रेजों ने भारतीय परंपरा के अनुसार शासन सौंपने की प्रक्रिया के बारे में जवाहर लाल नेहरू से पूछा तो उन्होंने श्री राजाजी से पूछा वह तमिल साहित्य से अच्छी तरह परिचित थे, वह जानते थे की सेंगोल सदियों से धर्मयुक्त शासन का प्रतीक रहा है, उन्होंने तिरुवदुथुराई अधीनम से एक बार पुन: बनाने का अनुरोध किया। सेंगोल चेन्नई के ज्वैलर वुम्मूदी बंगारूचेट्टी द्वारा बनाया गया और 15 अगस्त को नई दिल्ली भेजा गया। थिरुवदुथुराई अधीनम के प्रमुख श्री कुमारस्वामी थम्बिरन ने तब सेंगोल को सौंपा था, जो बाद में माउंटबेटन से जवाहरलाल नेहरू को साम्राज्य सौंपने के संकेत के रूप में प्रदान किया था।

विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा कि यह आयोजन भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता को दर्शाता है, जो पवित्र राष्ट्र के निहित लक्षण हैं। श्री मुथुरामलिंगा थेवर ने कहा है अध्यात्मवाद और राष्ट्रवाद इस देश की दो आंखें हैं। विश्व हिंदू परिषद इस आयोजन को राष्ट्र का गौरव मानती है, इसने इस राष्ट्र की ऐतिहासिक, पवित्र संस्कृति और परंपरा को उजागर किया गया है। उन्होंने कुछ राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी ताकतों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए इस घटना का राजनीतिकरण करने के प्रयास की निंदा की है। विश्व हिंदू परिषद इस अध्यात्मवाद और राष्ट्रवाद के संदेश को आने वाले दिनों में संपूर्ण देश में ले जाएगी जब विश्व हिन्दू परिषद अपने स्थापना के 60वें वर्ष में प्रवेश कर रही है।

 

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