हरिद्वार (पंकज चौहान) – विश्व इतिहास का महानतम अपराजित योद्वा, दिल्ली को राजधानी बनाकर एकछत्र राज करने वाला अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान
जन्म – ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष, द्वादशी तिथि विक्रम संवत 1223 तत्कालीन अजयमेरु वर्तमान अजमेर, राजस्थान।
बलिदान पर्व – माघ मास, शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि अर्थात बसंत पंचमी विक्रम संवत 1249 तदानुसार 14 फरवरी सन 2024 गजनी तत्कालीन अविभाजित भारत वर्तमान अफगानिस्तान।
अजयमेरु के चौहान राजवंश में पृथ्वीराज चौहान का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि विक्रम संवत 1223 को तत्कालीन अजयमेरु वर्तमान अजमेर, राजस्थान में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान को इतिहास में राय पिथौरा भी कहा गया है। महान हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के विशाल साम्राज्य पर तत्कालीन समय में इस्लामिक आक्रांताओ के कई भयानक युद्ध एवं आक्रमण हुए लेकिन दुश्मनों को प्रत्येक बार मुंह खानी पड़ी थी। बचपन से ही पृथ्वीराज चौहान शस्त्र विद्या में पूर्ण पारंगत थे, वह तीर और तलवार के अत्यंत शौकीन थे। बाल्यावस्था में एक समय पृथ्वीराज नें निहत्थे ही विशालकाय शेर को संघर्ष में मार गिराया था। आगामी समय में इसी वीर बालक ने युद्ध के मैदानों में अपनी वीरता, पराक्रम, शौर्य, नेतृत्व क्षमता से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए तत्पश्चात संपूर्ण विश्व के इतिहास में महानतम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुआ था।
विक्रम संवत 1223 से विक्रम संवत 1249 तक दिल्ली और अजमेर समेत संपूर्ण उत्तर भारत के विशाल साम्राज्य पर पृथ्वीराज चौहान निष्कंटक एकछत्र राज करते थे। प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार कट्टर जेहादी मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद गौरी ने तत्कालीन समय में विशाल संख्या में प्रशिक्षित एवं तत्कालीन समय के अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित सेनाओं के साथ अट्ठारह बार पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया था। जिनमें से सत्रह बार मोहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा था और प्रत्येक बार पृथ्वीराज चौहान के द्वारा जीवनदान भीख में दिये जाने पर बेहद अपमानित अवस्था वापस जाना पड़ा था। तत्कालीन समय के कुछ इतिहासकार युद्धों की संख्या के बारे में स्पष्ट तो नहीं बता पाते लेकिन इतना अवश्य मानते हैं कि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य अंतिम भीषण युद्ध थानेश्वर के निकट तराइन या तरावड़ी के मैदान में विक्रम संवत 1249 को हुआ था।
महान लेखक चंदबरदाई द्वारा लिखित “पृथ्वीराज रासो” नामक वीर रस से परिपूर्ण एकमात्र कालजयी ग्रंथ पृथ्वीराज चौहान के ही जीवन चरित्र पर लिखा गया है। लेखक, कवि चंदबरदाई द्वारा रचित उनकी जीवन की अंतिम गाथा में महानतम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान गज़नी, अफगानिस्तान में इस्लामिक जेहादियों की कैद में होने के बावजूद युक्तिपूर्वक मुस्लिम आक्रांता मौहम्मद गौरी का किस प्रकार वध करते हैं, इसका सजीवता से वर्णन किया गया है। कवि चंदबरदाई के सुझाव पर ही बन्दी मृतप्राय दृष्टिहीन पृथ्वीराज चौहान को मौहम्मद गौरी ने तीरंदाजी कौशल का प्रदर्शन करने के लिए सहमति दी थी। दृष्टिहीन पृथ्वीराज चौहान को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि अर्थात बसंत पंचमी के दिन विक्रम संवत 1249 को दरबार में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ बुलाया गया, तो भी उनके शौर्य, वीरता, पौरुष बल से घबराए मुक्कमल सुरक्षा व्यवस्था के पीछे बैठकर मौहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान से उसके तीरंदाजी कौशल का प्रदर्शन करने को कहा तब सौभाग्य से प्राप्त मौके को समझते हुए कवि और अभिन्न मित्र चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को कविता के माध्यम से प्रेरित किया था –
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चुको चौहान।।”
तीरदांजी कला में पारंगत और दक्ष पृथ्वीराज चौहान ने कोई गलती नहीं की, उन्होंने तवे पर हुई चोट और कवि चंदबरदाई के संकेत से एकदम सटीक अनुमान लगाकर घातक बाण का संधान किया, तीर मौहम्मद गौरी के सीने में जा घुसा जिसके परिणामस्वरूप मोहम्मद गौरी का तत्काल ही प्राणांत हो गया था। अचानक ही घटित हुए इस आश्चर्यजनक सुनियोजित घटनाक्रम के पश्चात दरबार में हाहाकार मच गया था। कवि चंदबरदाई और महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान किया था। यह घटनाक्रम बेहद विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय वीरता, पराक्रम, शौर्य और महान भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता को सिद्ध करती है।