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उत्तराखण्ड की महान विभूतियां

हरि सिंह थापा.
भारत के उन्नत ललाट हिमालय के वक्षस्थल उत्तराखण्ड की वीर प्रसविनी श्यश्यामला भूमि अनंतकाल से देशभक्तों तथा वीर सेनानियो की जन्मदात्री रही है। उत्तराखण्ड की पावन धरती ने आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण, कला, साहित्य, आर्थिक जैसे अनेकों महत्वपूर्ण क्षेत्रों के साथ–साथ क्रीड़ा के क्षेत्र में भी ऐसे अनेक ज्वाज्वल्यमान रत्नों को जन्म दिया है, जिनकी आभा ने देश ही नहीं वरन विदेशो को भी आलोकित किया है। उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ की भूमि पर जन्में खिलाड़ियो ने खेल के मैदानों पर अपने उत्कृष्ट खेल के प्रदर्शन से अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत के इतिहास में उत्तराखण्ड का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया गया है। इन्हीं विशिष्ट खिलाड़ियो में अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज हरीसिंह थापा जिन्होंने अपनी लगन एवं मेहनत से भारत का श्रेष्ठ मुक्केबाज होने का गौरव प्राप्त किया था। भारतीय बॉक्सिंग की जान कहे जाने वाले कैप्टन हरी सिंह थापा को उत्तराखण्ड में मुक्केबाजी खेल का जनक और मुक्केबाजी का भीष्म पितामह कहा जाता है।

जन्म – 14 अगस्त सन 1932 झांसी, उत्तर प्रदेश.
देहावसान –  7 फरवरी सन 2021 नैनी सैनी, पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड.

कैप्टन हरीसिंह थापा का जन्म 14 अगस्त सन 1932 को झांसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता जीतसिंह थापा ब्रिटिश इंडियन ट्रूप्स में सेवारत थे और माता सीमा देवी गृहिणी थी। हरीसिंह थापा ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी पाठशाला सेरी कुम्डार से ग्रहण की थी। इसके बाद वह अपने पिता के साथ उत्तर प्रदेश के मऊ चले गए थे। उत्तर प्रदेश में हाईस्कूल में अध्ययन के समय केवल 15 वर्ष की उम्र में वह सन 1947 में भारतीय थल सेना के सिग्नल कोर की ब्वाइज कंपनी में भर्ती हो गए थे। बचपन से ही खेलों के प्रति विशेष रुचि रखने वाले हरिसिंह ने सेना में फुटबॉल, तैराकी, मुक्केबाजी आदि खेलों में भाग लिया था। इस बीच बॉक्सिंग कोच एजी डीमैलो की प्रेरणा से उन्होंने बॉक्सिंग को ही अपना मुख्य खेल बना लिया था।

सन 1950 में हरिसिंह ने राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता के मिडिलवेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। सन 1950 से सन 1959 तक लगातार हरीसिंह थापा मिडिलवेट वर्ग के सर्विसेज के शीर्ष चैंपियन बॉक्सर रहे। 16 अक्तूबर सन 1957 में रंगून में आयोजित दक्षिण पूर्व एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हरीसिंह थापा ने बर्मा के तिन यू को पहले ही राउंड में धूल चटाकर स्वर्ण पदक जीता था। उनको सन 1958 में टोक्यो, जापान में आयोजित तृतीय एशियाई खेलों में रजत पदक मिला था। उन्होंने सन 1958 में ब्रिटिश अंपायर एंड कॉमनवेल्थ गेम्स कार्डिक लंदन में प्रतिभाग किया और पहले ही मुकाबले में वेल्स के मुक्केबाज ग्लेन वाटर्स को नाकआउट कर दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से अभ्यास के दौरान उन्हें गंभीर चोट लगने से वह आगे नहीं खेल सके थे। सन 1959 में उन्होंने मिडिल वेट की अखिल भारतीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने सन 1961 से सन 1965 तक सर्विसेज के मुख्य प्रशिक्षक के रुप में सेना में अपनी विशेष सेवाएं दीं थी।

सन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने अद्भुत युद्ध कौशल और शौर्य का प्रदर्शन किया था। भारतीय सेना ने उनकी उत्कृष्ट सेवाओं पर उनको रक्षा पदक, संग्राम पदक, सेना मेडल, इंडियन इंडिपेंडेंट पदक व नाइन इयर लौंग सेवा पदक से सम्मानित किया था। सन 1975 में वह ऑनरेरी कैप्टन पद से सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्त होकर वह पिथौरागढ़ अपने मूल निवास वापस आ गए थे। हरीसिंह थापा ने पिथौरागढ़ के देव सिंह मैदान में बच्चों को निशुल्क बॉक्सिंग की कोचिंग देना शुरु किया। उनके कुशल प्रशिक्षण और मार्गदर्शन में सीमांत जिले से कई प्रतिभावान राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज निकलकर सामने आए।उनके मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेने वाले देश के कई बॉक्सर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमके। पिथौरागढ़ में उन्होंने मुक्केबाजी की कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई थी।

विश्वपटल में भारतीय मुक्केबाजी का परचम लहराने वाले उनके शिष्यों में शामिल पदम बहादुर मल ने जकार्ता एशियन खेलों में स्वर्ण पदक के साथ सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज का पदक जीता था। हवासिंह एशियन स्वर्ण पदक विजेता होने के साथ ही द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित हुए थे। सात बार राष्ट्रीय चैंपियन रहे मूल सिंह, ओमप्रकाश भारद्वाज, एमके राय, एसके राय, एमएल विश्वकर्मा, धर्मेंद्र प्रकाश भट्ट, भाष्कर भट्ट, राजेंद्र सिंह सहित अनेक ऐसे खिलाड़ी हैं जो कैप्टन हरीसिंह थापा के प्रतिभाशाली शिष्यों में शामिल रहे हैं। बॉक्सिंग में भारत को पहला पदक दिलाने वाले कैप्टन हरिसिंह थापा को उत्तराखंड सरकार ने 2014 में द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया था। भारतीय बॉक्सिंग के पितामह अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज कैप्‍टन हरीसिंह थापा का देहावसान 89 वर्ष की उम्र में पिथौरागढ़ में नैनी-सैनी स्थित आवास पर 7 फरवरी सन 2021 को हुआ था।

पंकज चौहान

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