हरिद्वार (पंकज चौहान) – जब हम धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं तो ध्यान में आता है कि लक्ष्मण के द्वारा मारे गये मेघनाद की दक्षिण भुजा सती सुलोचना के समीप जाकर गिरी और पतिव्रता का आदेश पाकर उस भुजा ने सारा वृत्तान्त लिखकर बता दिया। सुलोचना ने निश्चय किया कि मुझे अब सती हो जाना चाहिये, किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती? जब अपने श्वशुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगाने के लिये कहा, तब रावण ने उत्तर दिया- देवि ! तुम स्वतः ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो। जिस समाज में बाल ब्रह्मचारी श्री हनुमान, परम जितेन्द्रिय श्री लक्ष्मण तथा एक पत्नीव्रती श्रीराम उपस्थित हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिये। मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश भी नहीं लौटायी जाओगी। जब रावण सुलोचना से ये बातें कह रहा था, उस समय कुछ मन्त्री भी उसके पास बैठे थे। उन लोगों ने कहा कि जिनकी पत्नी को आपने बंदिनी बनाकर अशोक वाटिका में रख छोड़ा है, उनके पास आपकी बहू का जाना कहाँ तक उचित है ? यदि वह गयी तो क्या सुरक्षित वापस लौट सकेगी ? रावण ने उत्तर दिया कि मन्त्रियो ! लगता है, तुम्हारी बुद्धि नष्ट हो गयी है। अरे, दूसरे की स्त्री को बंदिनी बनाकर रखना, यह तो रावण का काम है, राम का नहीं। प्रसंग छोटा है लेकिन, संदेश बहुत बड़ा है। धन्य है श्री राम और धन्य है श्रीराम का चरित्र बल। श्रीराम का ऐसा चरित्र बल, जिसका विश्वास और प्रशंसा शत्रु भी करते थकता नहीं। आज वर्तमान में इसी श्रीराम चरित्र की हमें आवश्यकता है। एक कवि ने कहा है कि “गिरि से गिरि पर जो गिरे, मरे एक ही बार। जो चरित्र गिरि तें गिरे बिगड़े जन्म हजार,,।
युगों से श्रीराम का चरित्र ही हम भारतीयों की प्रेरणा है। एक पुत्र के रूप में, एक पति के रूप में, एक भाई के रूप में, राष्ट्रप्रेेम के रूप में, मां शबरी, मां अहिल्या के वात्सल्य के रूप में, निषादराज सेे मित्रता की आत्मीयता के रूप में, जटायु को पिंड देकर असहाय की सहायता और प्रजा के बीच रहकर न्याय करके एक श्रेष्ठ शासक से लेकर अनेकों रूप में श्रीराम का चरित्र हम सबके लिए अनुकरणीय है। करुणा, दया, क्षमा, सत्य, न्याय, सदाचार, साहस, धैर्य, और नेतृत्व यह सभी श्रीराम के गुण हैं। इसलिए श्रीराम सबके हैं और सबमें हैं। श्रीराम का एक गुण ऐसा भी है, जिसकी चर्चा आज के समय में आवश्यक है-वह एक श्रेष्ठ संगठनकर्ता के रूप में। ध्यान में आता है कि लंका विजय के समय श्रीराम ने अपने साथ बंदर-भालुओं को लिया। मित्रो, अच्छे काम के लिए जनसहयोग की आवश्यकता होती है। अकेला व्यक्ति कोई बड़ा काम नहीं कर सकता है। छोटे-छोटे बंदर-भालुओं के सहयोग से समुद्र में पुल बनता चला गया। श्रीराम की मनःस्थिति समरस और सामाजिक थी, तो वहाँ परिस्थिति भी अच्छी होती चली गयीं।
आज श्रीराम के चरित्रों के गुणगान, अनुसरण और उसे अपने जीवन में उतारने का सही समय है क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली पर श्रीरामलला का भव्य मंदिर बनकर तैयार है और प्रभू श्रीरामलला उसमें विराजमान होने जा रहे हैं। यह प्रसंग केवल प्रभु श्रीरामलला के विराजमान होने का नहीं है, इससे आगे यह प्रसंग श्रीराम की प्राप्ति और जन्मभूमि की मार्यादा और उसके प्रेम के प्रति भी है। 500 वर्षो का लंबा संघर्ष, लाखों बलिदान के बाद अयोध्या में सनातन संस्कृति की प्रतिष्ठा हो रही है। प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का अवसर भारतीय इतिहास का यह स्वर्णिम दिन है। यह अवसर भारत सहित विश्वभर में निवास कर रहे करोड़ों भारतवंशियों को अत्यन्त भावुक और आनंद से विभोर करने वाला दिन होने जा रहा है।
वर्तमान पीढ़ी बहुत भाग्यवान है, जिसने अपनी आँखों से अयोध्याजी में प्रभू श्रीराम के मंदिर की भव्यता को साकार होते देखा है। पीढ़ियां लग गयी, जीवन लग गए, भक्ति की शक्ति के बीच संघर्ष होता रहा। श्रीराम कृपा से न्याय हुआ और आज अयोध्या अलकापुरी की आभा लिए हम सब को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। हम जाएंगे, परिवार के साथ जाएंगे, मित्रों के साथ जाएंगे, मां सरयू में स्नान करेंगे और प्रभू श्रीरामलला के श्रृंगार के दर्शन कर “अलकापुरी बनी अयोध्या जी की भूमि पर मस्तक रख भारतमाता की वंदना करेंगे,,।
लेखक – पदम सिंह, क्षेत्र प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ